तुलसीराम डेहरिया कंडक्टर से बना करोडों का आसामी
लखनादौन का सहकारी सिंडिकेट कंडक्टर से अकूत संपत्ति का साम्राज्य, किसानों के खून-पसीने की कमाई पर डाला डांका
अरविंद परवारी
लखनादौन हंटर। लखनादौन का सहकारी सिंडिकेट 25,000 की तनख्वाह पर करोड़ों का साम्राज्य, किसानों की खून-पसीने की कमाई पर महाघोटाला मध्यप्रदेश सरकार जहाँ सहकारिता को किसान कल्याण का आधार मानती है, वहीं सिवनी जिले के लखनादौन में उजागर हुआ करोड़ों की सार्वजनिक लूट का महाघोटाला इन दावों की धज्जियां उड़ा रहा है। आदिम जाति सेवा सहकारी समिति, जो किसानों की सेवा के लिए बनी थी, अब भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी का एक खुला अड्डा बन चुकी है। यह अत्यंत चौंकाने वाला है कि आज से 20 साल पहले बस का टिकट काटने वाला एक मामूली कंडक्टर तुलसीराम डेहरिया आज लगभग 100 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति का मालिक कैसे बन गया यह रातों-रात खड़ा हुआ काला साम्राज्य सीधे तौर पर किसानों की मेहनत की कमाई पर खड़ा हुआ है, और सरकारी तंत्र की नाक के नीचे चल रही इस खुली लूट ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
इस भयावह घोटाले की शुरुआत मूंग खरीदी से हुई। पिपरिया खरीदी केंद पर हुआ 10,000 किंटल मूंग का खरीद घोटाला तो इस भ्रष्टाचार की सिर्फ पहली परत है। सरकार द्वारा मूंग का समर्थन मूल्य ?8,682 तय होने के बावजूद, बाजार में घटिया मूंग 25,500 से 26,000 में बेची जा रही थी। इस अंतर का लाभ उठाते हुए, प्रबंधक तुलसीराम डेहरिया ने किसानों के नाम पर व्यापारियों की घटिया मूंग को ऊँचे सरकारी दामों पर खरीदा। यह धोखाधड़ी इतनी बेखौफ थी कि खरीदी की अंतिम तिथि 6 अगस्त के बाद भी वेयरहाउस में नरसिंहपुर और जबलपुर की मंडियों से घटिया मूंग की आवक जारी रही। यह सीधे सीधे किसानों के साथ क्रूर मजाक और धोखाधड़ी है।
सरकारी नियमों और रजिस्ट्रार ऑफिस से मिली जानकारी के अनुसार, एक सहकारी समिति प्रबंधक को उनकी वरिष्ठता के आधार पर मासिक 20,000 से 25,000 रुपये की तनख्वाह मिलती है। ये वही तनख्वाह है, जिस पर एक साधारण परिवार का गुजारा होता है। लेकिन, सवाल ये है कि जिस व्यक्ति की कुल मासिक आय मुश्किल से 25,000 रुपये हैं, वह आखिर 100 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति का
मालिक कैसे बन गया? यह आर्थिक चमत्कार है या किसानों की मेहनत की खुली लूट
तुलसीराम डेहरिया की संपत्ति में अचानक हुई वृद्धि स्तब्ध कर देने वाली है। एक व्यक्ति जिसकी मासिक आय मुश्किल से परिवार का पेट भर सकती थी, वह कैसे करोड़ों के आलीशान मकानों, लग्जरी गाड़यिों और व्यावसायिक प्लॉटों का मालिक बन गया यही नहीं, उनके बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए देश के बड़े शहरों में उच्च संस्थानों पर भेजना भी उनकी सीमित आय से बिलकुल असंभव है। यह सारी संपत्ति सिर्फ और सिर्फ किसानों की मेहनत की लूट का परिणाम है। डेहरिया ने अपनी करोड़ों की संपत्ति को अपने रिश्तेदारों के नाम पर छिपा रखा है, ताकि आर्थिक अपराध शाखा (श्वहृङ्ख) की जांच से बच सकें। एक संस्था, अनेक अपराध भ्रष्ठचार का काला साम्राज्य
सूत्रों के अनुसार, यह समिति कई गंभीर घोटालों का केंद्र बन चुकी है कर्ज माफी के नाम पर धोखाधड़ी 2018 में किसानों का कर्ज माफ होने के बाद भी, उन पर दो-दो बार अवैध व्याज थोपकर जबरन वसूली की गई।
बीमा राशि की लूट किसानों की बीमा राशि को भी डबल-डबल वसूलने का आरोप है।
खाद और यूरिया की कालाबाजारी खाद और यूरिया को बाजार में ऊँचे दामों पर बेचकर किसानों की कमर तोड़ी गई।
भ्रष्टाचार की हदें तब पार हो गई जब प्रबंधक डेहरिया ने समिति की ही संपत्ति का दुरुपयोग किया। उन्होंने और प्रशासक ने मिलीभगत कर, बिना किसी विज्ञापन या टेंडर प्रक्रिया के, समिति की इमारत को अपने पुत्र
को जन औषधि केंद्र खोलने के लिए सौंप दिया। यह कृत्य सीधे तौर पर सत्ता और पद का खुला दुरुपयोग है। यह समिति की संपत्ति है, किसी की निजी जागीर नहीं।
यह गोरखधंधा केवल दो कर्मचारियों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक व्यापक सिंडिकेट का हिस्सा है। सूत्रों के अनुसार, इस पूरे खेल में मध्य प्रदेश वेयरहाउस लॉजिस्टिक्स कॉरपोरेशन, किसान कल्याण कृषि विभाग, राजस्व विभाग और यहां तक कि पटवारी तक इस लूट में शामिल हैं। यह इसलिए संभव हुआ क्योंकि डेहरिया के सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के नेताओं से मधुर संबंध हैं, जो किसानों के शोषण का सीधा लाइसेंस बन गए हैं।
लखनादौन के
सहकारी सिंडिकेट पर हमारी रिपोर्ट के बाद, हमने समिति प्रबंधक तुलसीराम डेहरिया से उनके पक्ष और आरोपों पर स्पष्टीकरण सावक था। लेकिन, हमारे बार-बार ने कोई जवाब नहीं दिया। न तो उन्होंने लिखित में कोई प्रतिक्रिया दी और न ही फोन या व्हाट्सएप पर कोई बात की। उनकी यह चुप्पी इन गंभीर आरोपों को और पुख्ता करती है और दर्शाती है कि कहीं न कहीं कुछ छिपाया जा रहा है। उनकी खामोशी ने भ्रष्टाचार पर मौन की मुहर लगा दी है, जिससे किसानों का गुस्सा और भी बढ़ गया है। यह स्पष्ट है कि जब अधिकारी के पास जवाब देने के लिए कुछ नहीं होता, तो चुप्पी ही उनकी मजबूरी बन जाती है।
सवाल यह है कि क्या जिला कलेक्टर संस्कृक्ति जैन इस महाघोटाले पर तत्काल संज्ञान लेंगी? क्या आर्थिक अपराध शाखा (EOW) इस सिंडिकेट पर शिकंजा कसकर इन भ्रष्टाचारियों को सलाखों के पीछे पहुँचाएगी? जब तक ऐसे
मास्टरमाइंड खुलेआम घूमते रहेंगे, तब तक सहकारिता सिर्फ एक छलावा बनकर रह जाएगी और किसानों की लूट ऐसे ही जारी रहेगी।
इस मामले में पिपरिया वेयरहाउस के सीसीटीवी फुटेज की गहन जांच जरूरी है, जो इस पूरे फर्जीवाड़े का पर्दाफाश कर सकती है


