में अपनी सारी जिंदगी की आहूति कर दी उन्होंने दकियानुसी तथाकथित सामाजिक और धार्मिक परंपराओं के विरोध में तीखा संघर्ष किया और समुद्र मंथन जिससे उत्पीड़ित और समस्त जनता के लिए महासुखदायी अमृत हाथ लगा। जैसा कार्य किया उसकी मानसिकता बदली और जीवन को एक नया पाथेय मिला।
डॉ. भीमराव अंबेडकर एक ऐसा बहुमुखी व्यक्तित्व है, जिसके मूल में शोषितों उपेक्षितों को न्याय दिलाने की छटपटाहट है। इसके लिए उन्होंने आजीवन संघर्ष किया। अपने भाषण व लेखन के द्वारा जनता को सतत जागृत किया। संभवतः उनकी जीवनकाल में उनके कार्यों का ठीक-ठीकं आंकलन नहीं हो सका। उन्होंने स्वयं कहा था कि ‘‘लोग मुझे अभी समझ नहीं पाये हैं मुझे उपेक्षित दृष्टि से देखा जाता है। एक समय आएगा जब इस देश के लोग मुझे ठीक प्रकार से समझ पाएंगे और सम्मान करेंगे। लेकिन जब तक ऐसा समय आएगा तब तक मैं शायद जीवित नहीं रहूंगा।‘‘ उनका यह कथन सत्य सिद्ध हुआ। इस तरह हम देखते हैं कि बाबा साहेब ने अपने जीवन और कार्यों से भारत के करोड़ों शोषितों और पीड़ित व्यक्तियों के जीवन में सोयी हुई जीवनी शक्ति को जागृत किया। डॉ. अंबेडकर अपनी मंजिले साथ लेकर ही चलते रहे, अदम्य साहस के साथ उनका त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनको अंपनी अस्पृश्यता का बोध तो उन्हें बचपन में ही हो गया था। विद्यार्थी जीवन में यह भान हुआ की दलितों की उन्नति का रामबाण उपाय है शिक्षा, अंबेडकर के जीवन का ध्येय अछूतों को न्याय और समानता दिलाना था उन्होंने दलितों के नेतृत्व का आरंभ ‘मूकनायक‘ समाचार पत्र के प्रकाशन से किया।
अंबडेकर का कहना था कि स्वतंत्रता भीख मांगकर नहीं मिलती, उसे अपनी शक्ति व सामर्थ्य से पाना होता है आत्मोद्धार किसी की कृपा से नहीं होता अपना उद्धार स्वयं करना होता है आत्मोद्धार के लिए अंबेडकर आगे आए बंबई विधान सभा के सदस्य बनकर उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया इस दौरान स्त्री मजदूरों को प्रसूति अवकाश देने के संबंध में विधेयक प्रस्तुत किया इसे उन्होंने राष्ट्रीय हित का कार्य कहा। उनके द्वारा प्रमुख रूप से भारत के भावी संविधान में अस्पृश्यता निवारण की योजना बनायी। भारत सरकार द्वारा इस वर्ष भी उनके जन्म दिवस पर पूरे भारतवर्ष में अवकाश की घोषणा करना, उनकी वर्तमान में महत्ता को प्रदर्शित करता है।