is india and russia relation changing due to war

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मुकुल
रूस और यूक्रेन के बीच इस साल छिड़ी जंग का दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था पर ही नहीं, उनकी विदेश नीतियों पर भी असर पड़ा है। आजादी के बाद से ही भारत का झुकाव गुटनिरपेक्ष विदेश नीति के साथ-साथ रूस की ओर रहा है। यूक्रेन के मसले पर भी भारत संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ आए प्रस्तावों पर वोटिंग से दूर रहा है। रूस से सस्ते दामों पर तेल खरीदना भी उसने जारी रखा है। भारत का तर्क है कि अपने नागरिकों को सस्ती कीमतों पर पेट्रोल, डीजल और गैस मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत का यह स्टैंड पुरजोर तरीके से विदेशी मीडिया के सामने रखा है।

वैसे बीते कुछ दिनों का घटनाक्रम देखें तो भारत के रूस के समर्थन के पक्ष और विपक्ष में कई बदलाव देखे गए हैं-

  • शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन से साफतौर पर कहा था कि यह समय युद्ध का नहीं है।
    हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में रूस यूक्रेन से जुड़ा एक प्रस्ताव लेकर आया। रूस चाहता था कि यूक्रेन के 4 इलाकों पर उसके कब्जे के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर गुप्त वोटिंग की जाए। रूस के प्रस्ताव से भारत दूर रहा और उसे झटका देते हुए सार्वजनिक तरीके से वोटिंग कराए जाने के प्रस्ताव पर मतदान कर दिया। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से ऐसा दूसरी बार था, जब रूस को यूएन में भारत का साथ नहीं मिला।
  • इससे पहले भारत ने अगस्त में सुरक्षा परिषद में यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की स्पीच को ब्लॉक करने के खिलाफ वोट किया था। भारत का तर्क था कि उसका वोट किसी देश के खिलाफ नहीं है बल्कि उसने इस बात पर वोट किया है कि जेलेंस्की अपनी बात रखें या नहीं।

दबाव की राजनीति
रूस के लिए भारत की नीति में आए बदलावों को कई नजरिए से देखा जा सकता है। उनमें से एक है पश्चिमी देशों का पाकिस्तान के प्रति बदलता रुख। अमेरिका के बाइडेन प्रशासन ने हाल ही में हमारे पड़ोसी पाकिस्तान को उसके एफ-16 लड़ाकू विमानों के रखरखाव के लिए 450 मिलियन डॉलर (3,574 करोड़ रुपये) के पैकेज को मंजूरी दी है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर अपने अमेरिकी समकक्षों से इस पर चिंता जाहिर कर चुके हैं। एस. जयशंकर ने तो यहां तक कह दिया था कि आप हमें बेवकूफ नहीं बना सकते। हम जानते हैं कि एफ-16 जेट का इस्तेमाल किसके खिलाफ किया जाएगा। लेकिन भारत की चिंता के बावजूद अमेरिका ने अपना फैसला जारी रखा और कहा कि यह पाकिस्तान और उसका द्विपक्षीय मामला है। अमेरिका के इस कदम का मकसद पाकिस्तान को चीन की तरफ जाने से रोकना भी बताया जा रहा है, लेकिन भारत की चिंता को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

कश्मीर का सहारा
पश्चिमी देशों का कश्मीर मुद्दे पर रुख भी बदल रहा है। हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने जर्मनी में कश्मीर का मुद्दा छेड़ा। जर्मनी की विदेश मंत्री ने बिलावल के साथ जारी किए बयान में कश्मीर को लेकर कहा कि उनका देश कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की भूमिका की मांग करता है। भारत कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बताते हुए किसी तीसरे पक्ष की भूमिका को खारिज करता रहा है। कश्मीर मसले पर जर्मनी के रुख को भारत पर दबाव बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।

सख्त टिप्पणी
दरअसल, भारत साफ कह चुका है कि यूरोप के देशों को इस मानसिक स्थिति से बाहर आना होगा कि उनकी समस्या दुनिया की समस्या है, लेकिन दुनिया की परेशानी उनकी परेशानी नहीं है। विदेश मंत्री की यह टिप्पणी तब आई, जब यूरोपीय देश भारत को लगातार मनाने में लगे हैं कि वह यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस के खिलाफ रुख कड़ा करे। यूक्रेन पर अब तक संयुक्त राष्ट्र में भारत का संतुलित स्टैंड रहा है। देखने वाली बात होगी कि क्या पश्चिमी देश पाकिस्तान का सहारा लेकर भारत पर दबाव बनाने का खेल जारी रखेंगे या भारत की स्थिति समझ कर उसके साथ तालमेल बिठाते हुए आगे बढ़ेंगे।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं


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