political event of the week, विशुद्ध राजनीतिः 2014, 2019 और अब 2024… इस बार भी पार्टी पूरी तरह मोदी मैजिक के भरोसे है – vishudh rajniti modi magic nitishs dream project 2024 election and other political event of the week

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भले आम चुनाव होने में अभी डेढ़ साल का समय बाकी है, लेकिन बीजेपी इसमें कोई कसर छोड़ने के मूड में नहीं दिख रही है। एक तरह से उसने अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर भी दी है। साल 2014 और 2019 की तरह ही इस बार भी पार्टी पूरी तरह मोदी मैजिक के भरोसे है। एक बड़ी रणनीति के तहत अगले पांच सौ दिनों में पीएम मोदी उन 140 लोकसभा सीटों पर रैली करेंगे, जहां पार्टी अभी तक खाता भी नहीं खोल पाई है। बीजेपी को लगता है कि अगर अभी से उन सीटों पर मेहनत की जाए तो वे उसकी झोली में आ सकती हैं। वैसे, इनमें कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां 2019 में कम अंतर से जीते, और इस बार उन्हें बचाए रखने की चुनौती है। बीजेपी को लगता है कि अगर कहीं किसी दूसरे राज्य में सीटें कम हुईं तो इन नई जगहों से उसकी कमी पूरी हो जाएगी। इसी के चलते मोदी मैजिक से भरपूर ये रैलियां जल्द ही शुरू हो सकती हैं। दरअसल बीजेपी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि 2014 के बाद जिस तरह 2019 में पार्टी की सीटें पहले के मुकाबले बढ़ीं, उसी तरह 2024 में भी पार्टी की सीटें बढ़ेंगी और वह 303 से अधिक लोकसभा सीटें जीतेगी। पार्टी के एक सीनियर नेता ने कहा कि इस बार सहयोगी दलों के साथ मिलकर 400 के पार वाला लक्ष्य है, और उसे पूरा किया जाएगा।

​कांग्रेसी लोकल-वोकल

कांग्रेस ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति पूरी तरह से बदल ली है। इस बार दोनों राज्यों के चुनाव को पार्टी ने पूरी तरह लोकल चुनाव बना दिया है और उसी हिसाब से प्लान बनाए जा रहे हैं। पार्टी का मानना है कि पिछले कुछ विधानसभा चुनावों को हाई वोल्टेज बनाने का असर यह हुआ कि ये ‘राष्ट्रीय’ चुनाव बन गए। यही वह पॉइंट था, जहां से पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव को अपने पक्ष में कर लिया। ऐसे में इस चुनाव को कांग्रेस गुजरात में भूपेंद्र पटेल और हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर का चुनाव बनाकर पेश कर रही है। मौजूदा मुख्यमंत्रियों को सामने रखकर पार्टी सिर्फ राज्य के मुद्दों पर ही चुनावी चालें चल रही है। कांग्रेस ने अपनी पूरी बिसात ही लोकल मुद्दों पर बिछाई है और इसीलिए दोनों राज्यों में अब तक प्रियंका गांधी की सिर्फ एक रैली हुई है- हिमाचल में। राहुल गांधी तो अभी तक दोनों में से एक भी राज्य में नहीं गए हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश में चुनाव की अधिसूचना भी जारी हो चुकी है और नामांकन भी शुरू हो चुका है। पार्टी का मानना है कि कुछ मिसालें हैं जहां लो-प्रोफाइल चुनाव का लाभ उसे मिला है। पार्टी हिमाचल प्रदेश की मिसाल दे रही है, जहां कांग्रेस ने एक लोकसभा और दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी। अब ऐसी ही उम्मीद पार्टी को विधानसभा के मुख्य चुनाव में भी है।

​कब होगा फेरबदल

2024 आम चुनाव से पहले केंद्र सरकार में अंतिम फेरबदल कब होगा, इसे लेकर पिछले कुछ दिनों से लगातार कयासबाजी जारी है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही थी कि त्योहार से पहले होगा, लेकिन ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। अब माना जा रहा है कि गुजरात-हिमाचल प्रदेश के चुनावों तक ऐसा होना मुमकिन नहीं लग रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि जब भी होगा, व्यापक स्तर पर होगा। कई नए चेहरे होंगे और पुराने चेहरों की छुट्टी भी हो सकती है। वहीं एकनाथ शिंदे वाली शिवसेना भी केंद्र में अपना हिस्सा लेने के लिए बेसब्र है। फेरबदल के बार-बार टलने से कई संभावित उम्मीदवारों में बेचैनी बढ़ती जा रही है। सभी को पता है कि सरकार में फेरबदल के बारे में पीएम मोदी और उनके चंद करीबी लोगों के अलावा किसी और को कोई ठोस जानकारी नहीं होती है।

​गहलोत का क्या होगा

कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव आखिर हो ही गया। एक बार फिर अब सबकी नजरें राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत पर टिक गई हैं। फिर से वही सवाल हो रहे हैं कि क्या गहलोत रहेंगे, या क्या वह बदल दिए जाएंगे? और अगर बदल दिए गए तो क्या सचिन पायलट को कुर्सी मिलेगी? यह भी कि अगर गहलोत बदले गए तो उन्हें क्या भूमिका मिलेगी? अब तो कांग्रेस अध्यक्ष बनने का विकल्प हाथ से जाता रहा। पार्टी के अंदर इन तमाम सवालों को लेकर अब मंथन का नया दौर शुरू होगा। लेकिन चूंकि अशोक गहलोत गुजरात में पार्टी के मुख्य पर्यवेक्षक हैं, ऐसे में चुनाव से पहले तक तो किसी तरह के बदलाव की संभावना नहीं है। उसके तुरंत बाद राज्य का बजट आ जाएगा, जिसे पेश करने की बात अशोक गहलोत पहले ही कर चुके हैं। ऐसे में अगर गहलोत बजट के बाद पद छोड़ने की पेशकश करते भी हैं और सचिन पायलट के लिए रास्ता खुलता भी है, तब शायद सचिन पायलट न राजी हों। वह अपने लिए राज्य में कम से कम एक साल मांग रहे थे और पार्टी नेतृत्व को पंजाब में चन्नी की मिसाल दे रहे थे। कुल मिलाकर जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव समाप्त हो गया, तो अब पार्टी को राजस्थान की समस्या सबसे पहले सुलझानी होगी।

​नीतीश का ड्रीम प्रॉजेक्ट

नीतीश कुमार एक बार फिर अपने पुराने ड्रीम प्रॉजेक्ट को जिंदा करना चाहते हैं। वह पुराने जनता दल को एक करना चाहते हैं। पिछले कुछ दिनों से जिससे मिल रहे हैं, उसी से वह अपनी यह मंशा पूरे दिल से बता रहे हैं। जब वह हरियाणा गए तो चौटाला परिवार से मन की बात कही। जब मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देने गए तो वहां शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव से अनौपचारिक रूप से इस बारे में बात की। वह जेडीएस नेता देवेगौड़ा से भी बात कर चुके हैं। नीतीश कुमार इसके लिए हरियाणा में एनडीए सरकार की सहयोगी दुष्यंत चौटाला से भी आग्रह कर रहे हैं। लेकिन अभी तक इसके लिए ठोस भरोसा नहीं मिला है। नीतीश कुमार इन नेताओं से यह भी कह रहे हैं कि अगर जनता दल पुराने स्वरूप में एक होता है तो फिर वह इसके बेहतर गठबंधन और सभी को सम्मानजनक हिस्सेदारी के लिए कांग्रेस से बात करने के लिए भी तैयार हैं। जेडीयू के नेताओं के अनुसार दिवाली के बाद नीतीश कुमार एक बार फिर विपक्षी नेताओं से मुलाकात शुरू करेंगे। इसकी शुरुआत वह कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के साथ कर सकते हैं।

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